Tuesday 15 November 2011

माँ के सपने।


पता नहीं माँ हमेशा दो कप चाय क्यों बनाती 
वो अपने अल्मिराह में हर वक़्त जगह क्यों बनाती 
और क्यों कहती है की अपने सपनों को जीना चाहती है

हर दिन खाने पे एक एक्स्ट्रा प्लेट लगाती
रोज़ रात मुझे बिस्तर के बीच मे सुलाती 
खुद एक कोने मे सो जाती है; दूसरे कूने पे
कहती है की अपने सपनों को सुलाना चाहती 
वो अपने सपनों को जीना चाहती है

अखबार कभी नहीं पढ़ती फिर भी मंगाती 
क्या वो अपने सपनों को अखबार भी पढ़ाना चाहती है?
सपना क्या है जब पूछती हु तो रो पड़ती है
और सुबक सुबक कर  कहती है की सपना वही है
जिसे वो बिस्तर के दूसरे कोने पे कभी सुला नहीं पाती
पर मैं उनके सपनों को समझ के भी पूरा नहीं कर पाती

माँ हर वक़्त कुछ तस्वीरों को सजाती
और मैं उन तस्वीरों में सिर्फ माँ को ही पहचान पाती 
दूसरा हमेशा उनका सपना होता 
जिसे मैं समझ के भी पूरा नहीं कर पाती

माँ दो प्यार करने वाले को देख कर थम सी जाती 
और उनकी आँखें मुझे वो सपना दिखा जाती
आँसू के दो बूंद मुझे भी छू जाते 
पर माँ कहती की वो सपने मे भी 
मेरी आंखों में आँसू नहीं देखना चाहती। 

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